I was going to my nanighar when at the next station a poor
man with his 10 yr old kid boarded the train. They sat just behind me. The
faces of the people were gross when they crossed them. May be they didn’t
wished their costly dresses to get spoiled by the touch of those torn clothes.
The gross eyes filled with hatred when they realized that the child was mentally
disabled. Now they were trying hard to protect themselves from the touch of the
child.
नहीं जानता मैं कौन हूँ ,
वादियाँ चीख रही हैं, मैं मौन हूँ ,
मुसाफिर नहीं हूँ, मैं अनजान सवारी ,
मैं तो हूँ बस, एक अनाड़ी ।
रखते हैं बाबा, सीने से लगाकर ,
माँ का आँचल, चाहता हूँ अकसर ,
इतना प्यार किस्मत ने है वारी ,
मैं तो हूँ बस, एक अनाड़ी ।
घूरते हैं मुझको, मैं खिलौना हूँ ,
उनकी नज़रों में, मैं घिनौना हूँ ,
मुंह फेरकर भी बद्दुआ है जारी ,
मैं तो हूँ बस, एक अनाड़ी ।
खुश होता हूँ, तो चीखता हूँ ,
रोता हूँ जब मैं, तो चीखता हूँ ,
पेड़ चल रहे हैं, या ये रेलगाड़ी ,
मैं तो हूँ बस, एक अनाड़ी ।
तन नहीं, दिल साफ़ है मेरा ,
होटों पे मुस्कान, खुद खुदा ने बिखेरा ,
जिंदा हूँ, मुझको ज़िन्दगी है प्यारी ,
मैं तो हूँ बस, एक अनाड़ी ।
हो सके तो मुझे, देख मुस्कुरा देना ,
कर सको तो मुझे, गले से लगा लेना ,
रोती हैं पर नहीं ये आँखें मेरी ,
मैं तो हूँ बस, एक अनाड़ी ।
न धर्म, न कोई जात है मेरी ,
मोहब्बत और प्यार, पहचान है मेरी ,
फिर भी मंदबुद्धि कहती दुनिया सारी ,
मैं तो हूँ बस, एक अनाड़ी ।