The poem is dedicated to every child working for us at tea-stalls, dhabas, etc and dream of being like us one day. A boy once asked me if I have ever been on an airplane which had flown just minutes before, above our head. I replied yes. He looked at me, smiled and went back to his work.
इन छोटी सी आँखों में सपने ,
कुछ चुरा के , कुछ अपने ,
एक टूटे पंछी की उड़ान ,
दुनिया एक पिंजरा, कैद हर इंसान ।
कद है छोटा मेरी उम्र भी ,
तभी हँसता हूँ , मैं दुःख में भी ,
नंगे पाँव , कपड़ों में जाले ,
सपने बहुत लेकिन है काले ।
चाय की एक घूंट के संग मैं ,
अपने सपनों को भी पीता हूँ ,
वो बड़ी पतंग है आकाश में ,
पाने की जिद लेकर मैं जीता हूँ ।
परिंदों से उड़ना सीखा है ,
फिर भी जाने क्यूँ रेंगता हूँ ,
मार दे दो हाथ मुझको तू ,
पर गाली पे मैं रोता हूँ ।
बहती धारा में , नाव पे बैठा हूँ ,
कोई बस , मेरी पतवार को ढूंढे ,
गिरती है गालों पे , दिन में कैसे ,
आँखों से निकलकर , ओंस की बूँदें ।
चाय की एक घूंट के संग मैं ,
अपने सपनों को भी पीता हूँ ,
वो बड़ी पतंग है आकाश में ,
पाने की जिद लेकर मैं जीता हूँ ।
एड़ियाँ फटी पड़ी है मेरी ,
पर हौसलों पे न ज़ख्म हुए ,
लालिमा है ये सूरज की या ,
मेरी उमीदों के फिर क़त्ल हुए ।
बेहोशों की इस भीड़ को मैं ,
होश में शायद ले आता हूँ ,
कभी नज़र घुमा के देखना ,
नुक्कड़ पे चाय पिलाता हूँ ।
चाय की एक घूंट के संग मैं ,
अपने सपनों को भी पीता हूँ ,
वो बड़ी पतंग है आकाश में ,
पाने की जिद लेकर मैं जीता हूँ ।
वो बड़ी पतंग है आकाश में ,
पाने की जिद लेकर मैं जीता हूँ ।