क्या लिखूँ,
क्या लिखूँ मैं तेरे हुश्न की तारीफ में ।
पंछियों की चहचहाहट हो ,
बहते पानी की गरगराहट हो ,
खुदा की तालीम कोई कलमाह हो ,
मोहब्बत नाम का एक इलज़ाम हो ।
क्या लिखूँ,
क्या लिखूँ मैं तेरे हुश्न की तारीफ में ।
बच्चे की हँसी सी पाक हो ,
शबनम में भीगी हुई रात हो,
आइना हो कुदरत के ख़ज़ाने का ,
इल्म हो , रब की इबादत का ।
मीठे झरनों का तुम संगम हो ,
बांसुरी से निकलती हुई सरगम हो ,
पत्तों की नरम सी छाँव हो ,
सर्दी की पहली सुनहरी धूप हो ।
क्या लिखूँ,
क्या लिखूँ मैं तेरे हुश्न की तारीफ में ।
शायर की सोच उसकी कलम हो ,
फूलों पे बैठी नादान सी तितली हो ,
तेज़ से जिसके सूरज भी पिघला हो ,
बादलों में जैसे इंद्रधनुष निकला हो ।
बरसात में नाचता मोर हो ,
ख़ामोशी में डूबी हुई शोर हो ,
खोये हुए मुसाफिर की तलाश हो ,
शायद किसी काफिर की नमाज़ हो ।
क्या लिखूँ,
क्या लिखूँ मैं तेरे हुश्न कि तारीफ में ।
रेतीले सागर की प्यास हो तुम ,
आँखों से बहता ज़ज़बात हो तुम ,
एक आशिक़ की तड़पती बेक़रारी हो तुम ,
नज़ाकत से रुबरु एक दुल्हन हो तुम ।
अण्डों को तोड़ती हुई ज़िन्दगी हो ,
एक माँ की अपने बच्चे से नाराज़गी हो ,
ईमान साथ नहीं देता मेरा कहने को ,
कोई और नहीं तुम ही मेरे खुदा हो ।
तू ही बता ,
क्या लिखूँ मैं तेरे हुश्न की तारीफ में ।
thoroughly enjoyed reading it.
ReplyDeleteI enjoyed writing it and remembering her :D
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