इंसान हम कहते खुद को , इंसानियत पूजा करते हैं ,
भंवर में फंसे लोगों को देख , आँखें बंद कर चलते हैं ,
गलतियाँ खुद कर के हम , देश को आगे करते हैं ,
फिर गौरवांकित होकर , इसको पिछड़ा कहते हैं |
इंसानियत के चोले में , हैवानियत छुपाई है ,
राक्षशों से बढ़कर , अपनी शख्सियत बनाई है ,
लहू के रंग का आज , चढ़ा ये कैसा भंग है ,
कतरा कतरा चीख रहा , कैसा ये प्रचंड है |
धर्म के नाम मारना है , बिन बात मार डालेंगे ,
लाशों के इस ढेर पे , आशियाँ बनाई है ,
खुदा के बन्दे कहते खुद को , नमाज़ भी न अदा की ,
मंदिरों में जा कर उन्होंने , सिर्फ घंटियाँ बजायी है |
आग जो लगानी है तो , सीने में जगाओ तुम ,
लाशें जो बिछानी है , देश के दुश्मनों को मारो तुम ,
मरते हैं तो रोज़ लोग , तुम क्या ख्याति पाओगे ,
शान से जिओगे , और शहीद कहलाए जाओगे |
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